इंदौर समाचार में प्रकाशित व्यंग्य
दिनांक 17 मई 2021
इन दिनों हम सब उस वायु को ढूंढ रहे हैं, जिसमें हमारे प्राणों ने पहली सांस ली थी। इस प्राणवायु को डॉक्टरी भाषा में ऑक्सीजन कहा जाता है। आम जन इसे गैस कहते हैं।
आज हमारा सारा प्रशासन गैस पर है, पता नहीं कब सांस की डोर टूट जाए। प्रशासन की नहीं, जनता की सांस टूटने की बात हो रही है। प्रशासन तो अमर होता है। अक्सर उसके फेफड़ों को ठेकेदारों और दलालों की प्राणवायु पर ज्यादा निर्भर पाया जाता है। वैसे मूलरूप से प्रशासन के मुलाजिम साहब से, साहब बड़े साहब से और बड़े साहब मंत्री साहब से, मंत्री सरकार से, सरकार पार्टी से और पार्टीयां जनता के प्राणों से प्राणवायु प्राप्त करते हैं। दिल्ली में शराब की कतार में खड़ी महिला बता रही थी कि
वह पिछले पैंतीस
सालों से शराब की ऑक्सीजन पर जी रही है।
उस महिला को तो शराब की लत होगी
पर हमारे मंत्री और पार्टियां तो सच में ऑक्सीजन कनस्नट्रेटर हैं। यह लोगों के
प्राणों को तोतों में डाल कर प्राणों से प्राणवायु सोंखते हैं। हम सबने बचपन में
एक कहानी सुनी है, जिसमें एक राक्षस के प्राण कहीं
दूर टंगे पिंजरे में बंद तोते में होते थे। हमारे नेताओं के प्राण भी हमारे वोटों
और देश के नोटों में बंद पाए जाते हैं। इस महामारी के संकट में यह लोग भी अपने
अपने प्राणों के तोतों को संभाल रहे हैं, जिनमें इनके प्राण बंद हैं।
इस महामारी में भी प्रशासन और
सरकार जनता को उम्मीदों के तोते पकड़ा रहे हैं और देश की जनता के प्राणों से वायु
निकलती जा रही है। अब इस भोली उम्मीद पर रोज सैकड़ों प्राण कुरबान हो रहे हैं कि
सरकार-प्रशासन को समय रहते प्राणवायु का इंतजाम कर लेना चाहिए था। यह तो शादी की
घोड़ी से घुड़दौड़ जीतने की उम्मीद करने से भी बेमानी है। यह घोड़ी तो तब चलती है
जब सारा कुनबा मुहल्ले के साथ नाच कर थक जाता है। कोरोना के मरीजों का नाच कम हो
गया था, घोड़ी भी खड़ी हो गई थी। अब मौत का
नाच चल रहा है तो घोड़ी भी चलेगी।
हमें भी हमारे प्राण किसी वायु पर
चलते हैं, यह तभी पता चलता है जब हमारे
फेफड़े प्राणवायु ढूंढते-ढूंढते दम तोड़ने लगते हैं। इस महामारी में भी कालाबजारी
से मजबूरी का लाभ लेने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं। देर-सबेर कोरोना के वायरस का भी
कोई न कोई इलाज मिल ही जाएगा परंतु यह लापरवाही, गैर-जिम्मेदारी, बेईमानी, आलस और स्वार्थी होने का वायरस हममें सामूहिक रूप से कूट-कूट कर भरा है, इसका कोई इलाज नहीं है।
कुशल कुमार