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बुधवार, 7 अप्रैल 2021

2020: एक आखिरी प्रेम कथा


 व्यंग्य:

2020: एक आखिरी प्रेम कथा


एक कह रहा है, “मैं प्यार करता हूं”

दूसरा कह रहा है, “प्यार करता है तो लिख कर दे”।  

पहला कह रहा है, “मैं कह रहा हूं, क्या इतना काफी नहीं है? हमारे यहां प्यार करने की परंपरा है लिख कर देने की नहीं। आज तक किसी ने लिख कर नहीं दिया। क्या शीरी ने फरहाद को लिखकर दिया था? क्या मजनू ने लैला को, पुन्नू ने सस्‍सी को, महिवाल ने सोहनी को लिख कर दिया था? तुम समझ नहीं रहे हो। सारी दुनिया प्यार की दुश्मन होती है। लिख कर देने से दुश्मन जाग जाते हैं। थाने पहुंच जाते हैं और गुंडे भेज देते हैं। मैं कह रहा हूं मान जाओ। मैं सच में प्यार करता हूं।

दूसरा मान नहीं रहा है। “मूर्ख मत बनाओ। प्यार करते हो तो लिख कर दे दो। इतनी सी बात नहीं मान रहे हो और हजार बातें कर रहे हो”।  

“हद है यार! एक बार सबके सामने कहने से शादी और तीन बार कहने से तलाक हो जाता है, तो कहने से प्यार क्यों नहीं हो सकता है”।  

“तुम भी ना बातों के उस्ताद हो। मैं तुम्हारे झांसे में आने वाला नहीं हूं। तुम्हारी जुबान का कोई भरोसा नहीं है इसलिए कह रहा हूं लिख कर दो। मुझे तुम्हारे प्यार का कोई ना कोई सबूत चाहिए। जिससे मुझे तुम्‍हारे प्‍यार पर यकीन हो जाए”।   

“यार। सबूत और दलीलें तो अदालत में चलती हैं। यह तो दिलों का मामला है। इतिहास में एक बार दुष्यंत ने सबूत के तौर पर शकुंतला को अंगूठी दी थी। वह अंगूठी शकुंतला को बहुत महंगी पड़ी थी। इस के चक्‍कर में उसे क्या-क्या झेलना पड़ा। तुम्हें तो पता ही होगा। दुष्यंत शकुंतला को भूल गया  और अंगूठी को मछली खा गई। यह तो उसकी किस्मत अच्छी थी। जिस मछली ने अंगूठी खाई थी। वह मछुआरे के जाल से सीधे राजा की थाली में पहुंच गई। राजा को सबूत मिल गया और शकुंतला को प्यार मिल गया। सोचो यदि अंगूठी किसी और के हाथ लग जाती तो वह किसी और को अपनी शंकुतला बना लेता और शकुंतला रोती रह जाती”।


“तुम कहानियां मत सुनाओ। इतने पहाड़ फाड़ कर तेरे दरवाजे तक आया हूं। जब तक लिख कर नहीं दोगो मानूंगा नहीं”।  पहले वाले ने थक कर कह दिया, “अच्‍छा बाबा, लिख कर दे देता हूं”। 

कहानी यहां खत्‍म हो जाना चाहिए थी पर हुई नहीं।

दूसरा और हत्‍थे से उखड़ गया और कह रहा है, “तुम तो गजब के पलटू हो। अब लिख कर देने को भी तैयार हो गये। अब तो तुम अपना प्‍यार वापस लो तब तुम्‍हारा गिरेबान छोड़ूंगा”। 

“यार। प्‍यार है प्‍यार कैसे वापस ले सकता हूं शादी नहीं है जो तलाक दे दूं”। 

“मुझे कुछ नहीं पता, बस तुम अपना प्‍यार वापस लो”। 

नोट: इस कथा का किसानों और उनके आंदोलन से संबंध है या नहीं, इस पर हम चुप रहेंगे। 

कुशल कुमार

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