अक्षर विश्व उज्जैन में प्रकाशित व्यंग्य।
भुट्टा चर्चा
भुट्टा चोरी की एक सनसनीखेज घटना पर सारे देश में हंगामा
मचा हुआ है। इस पर चर्चा करने के लिए आज हमारे साथ जुड़ रहे हैं। भुट्टा चोर के
प्रवक्ता भीक्खूराम जी, भुट्टा किसान के प्रवक्ता आड़तीलाल जी, खेतीवाड़ी विशेषज्ञ खरपतवार जी और भूख विशेषज्ञ अघाये
राम जी।
भुट्टा चोरी के इस जघन्य और शर्मनाक अपराध के कारण आज सारे देश में अफरातफरी का
माहौल बना हुआ है। कानून व्यवस्था के साथ-साथ नैतिक संकट भी खड़ा हो गया है। चर्चा
की शुरूआत भीक्खूराम जी से करते
हैं। भीक्खूराम जी बताएं
कि आखिर भुक्कड़ जी ने यह
अपराध क्यों किया?
देखिए भूख से परेशान भुक्कड़ जी खेत के पास से गुजर रहे थे तो भुट्टे ने उनको ललचा
कर भुट्टा तोड़ कर खाने के लिए मजबूर कर दिया और जब उनको अपनी गलती का एहसास हुआ
तो वे इस नुकसान की भरपाई करने के लिए भी तैयार हो गये। लेकिन किसान ने इंकार करते
हुए हंगामा खड़ा कर दिया। वे महोदय एक ही बात पर अड़े हुए थे। बाकी सब ठीक पर बताओ
मेरा भुट्टा क्यों तोड़ा?
आड़तीलाल बीच में कूद पड़े। यह तो चोरी और सीनाजोरी है।
आपको पता होना चाहिए कि किसान कितनी मेहनत और प्यार से भुट्टा उगाता है। भुट्टे से उसके कितने सपने और
अरमान जुड़े हुए होते हैं। इन राम जी ने भुट्टा तोड़ा और खा लिया। ठीक है भूख लगी
थी मन ललचा रहा था तो आप किसी का भी भुट्टा तोड़ कर खा लेंगे। शर्मिंदा होने की
जगह भरपाई की धोंस दिखा कर किसान की भावनाओं और मजबूरी का मजाक उड़ाया जा रहा है।
जब तक न्याय नहीं मिलेगा।
हम चुप नहीं बैठेंगे। भुट्टा चोर मुर्दाबाद।…………
न्याय तो होना ही
चाहिए। इसके पहले कि विशेषज्ञों से विचार लें। भीक्खूराम जी जल्दी से अपना जवाब दें।
भीक्खूराम बोलें उसके
पहले ही आड़तीलाल जोर जोर से चिल्लाने लगते हैं। अंधेर गर्दी है। चोर को सजा मिलना चाहिए।
भीक्खूराम भी चिल्लाने लगते हैं। भुट्टा खाया तो क्या हुआ। फिर दोनों एक साथ चिल्लाने लगते हैं और किसी को कुछ समझ नहीं आता है। बड़ी
देर तक हू, हुआ चलती रहती
है। फिर संचालक उन दोनों से भी ज्यादा जोर से चीख कर उन्हें चुप कराने में सफल होता है और बहस के नियमों पर लंबा
प्रवचन देने के बाद विशेषज्ञ घास पतवार जी को आमंत्रित करता है।
घास पतवार जी दार्शनिक लहजे में। खेती वाड़ी बड़ा जोखिम का
काम हो गया है। जंगली और आवारा जानवर तो नुकसान करते ही हैं। अब इंसान भी उनके साथ मिल गया
है।(बीच में भीक्खूराम चीखने लगते हैं।) आप बोल रहे थे तो मैं सुन रहा था। अब आप
सुनिये। जब मैं ही बोल नहीं पा रहा हूं तो किसान खेती कैसे कर पाएगा। कोई भी जब
चाहे भुट्टा तोड़ लेगा तो न्याय कैसे होगा।
भीक्खूराम चिल्लाते हैं। भूख लगी थी खा लिया। पैसे दे रहे हैं तो
नहीं, न्याय चाहिए। अब भुट्टे की जगह खेत में भुक्कड़ जी खड़े हो जाएं। इस हु, हुआ के बीच घास पतवार जी चीखते हैं। भूख चोरी का
अधिकार नहीं है। भुट्टे के बदले भुट्टा यह तो जंगल राज है। हम संविधान को मानने
वाले सभ्य समाज हैं। हमें
न्याय चाहिए।
काफी मशक्कत के बाद किसी
तरह हु,हुआ रोक कर
संचालक अघाये राम जी को आमंत्रित करता है। आप बड़ी देर से और धैर्य से सुन रहे थे।
आप संक्षेप में बात रखें। समय की कमी है।
मैंने अपना जीवन भूख से आरंभ किया था। खा खा के भूख को
ठिकाने लगाने में विश्वास रखता हूं।
भूख लगे तो जो मिले खा लेना चाहिए। मैं इसे मौलिक अधिकारों में शामिल करने की
लड़ाई लड़ रहा हूं। भूख एक प्राकृतिक आपदा है। मेरे मित्र भुक्कड़ पर यह आपदा आई और उन्होनें भुट्टा खा लिया। भुट्टा खा कर उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है। कोई अन्याय हुआ ही नहीं तो न्याय मांगने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।
दोस्तो आपने सबके
विचार सुने और मुद्दा बहुत ही गंभीर है। एक तरफ भूख और दूसरी तरफ न्याय। इसका निर्णय हम आपके विवेक पर छोड़ते हैं और बहस
को यहीं समाप्त करते हैं।
नोट : इस बहस में चैनल से कोई निर्देश नहीं मिला था इसलिए
संचालक समझ नहीं पाया कि किसका साथ देना लाभप्रद होगा।
कुशल कुमार
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