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रविवार, 25 अप्रैल 2021

सफाई चिंतन चालू है।

अप्रैल 25, 2021 0

 अक्षर विश्व उज्जैन में प्रकाशित व्यंग्य

दिनांक 19 अप्रैल 2021



सफाई चिंतन चालू है।
हम दुनिया के सबसे महान सफाई पसंद लोग हैं और कोई भी सफाई के मामले में हमारा मुकाबला नहीं कर सकता है। हम किसी तराजू पर तोले नहीं जा सकते हैं क्योंकि हम महान हैं। हम सफाई को लेकर हमेशा सतर्क रहते हैं और एक क्षण भी कचरा या गंदगी सहन नहीं कर सकते हैं।
जैसे ही हमें घर के अंदर कचरे का छोटा सा अंश भी दिखता है, हम तुरंत उसे खिड़की, बाल्कनी, दरवाजा से फेंक कर बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। हमारा दावा है कि हमारे घरों और हम पर गंदगी का कोई निशान नहीं मिल सकता है। हम सड़क पर चलते-चलते, गाड़ी-बस में, बाग-बगीचे में या कहीं भी कुछ खा या पी रहे हों और उससे छिलका, कागज, बोतल, प्लास्टिक की थैली जो भी अखाद्य निकलता है। हम उसे उसी समय, उसी जगह फेंक कर स्वंय को तुरंत स्वच्छ कर लेते हैं।
किसी भी कचरे को ढोना हमें कतई मंजूर नहीं है। हम पान-तंबाखू का लुत्फ उठाते समय भी पूरी तरह सावधान रहते हैं। जैसे ही पान-तंबाखू का आनंद पूरा होता है हम पान की पीक का उसी स्थान पर तुरंत विसर्जन कर देते हैं। पीक या किसी भी गंदगी की क्या मजाल है जो हमारे भीतर प्रवेश कर जाए। अब मुंह में पान हो और छींटों से सामने वाले की मुंह, कपड़ों सहित सारे शरीर की शुद्धि हो जाए वो अलग बात है।
स्वच्छता के साथ हमारा शुद्धि का भी विशेष आग्रह इतना भारी है कि मंदिरों और घरों के साथ-साथ हमने दफ्तरों और दुकानों तक में चपलों जूतों का प्रवेश वर्जित कर रखा है। हमसे जितना हो सके करते हैं पर सारी दुनिया का ठेका हमने थोड़ी ले रखा है। हमारी जिम्मेदारी घर, कार, दुकान-दफ्तरों के दरवाजों के भीतर तक सीमित है।
सड़कें, मुहल्ले और सार्वजनिक स्थल सरकार की जिम्मेदारी है। इस मामले में सोचने की बात यह है कि हम लोग सड़कों पर कचरा नहीं फेंकेगे तो सफाई काम में लगे लाखों लोगों को सरकार काम से निकाल देगी और वे बेरोजगार हो जाएंगे। सरकारें भी कमाई के पीछे पड़ी हैं, कचरा उठवाने के बजाए इन लोगों को हम जैसे कचरा फेंकनें वालों से दंड बसूलने के काम में लगा दिया है। इस कारण सफाई हो नहीं पाती है और ठीकरा हम जैसे सफाई पसंद नागरिकों के सिर पर फोड़ा जाता है।
इसी तरह हमारी खिड़की के नीचे टैरेस वाले घर में एक सज्जन ने आते ही टेरेस में बगीचा लगाया और कहा कि सहयोग करें। हमने उसी दिन से कचरे के बजाए फलों-सब्जियों के छिलके और बचा हुआ अन्न फेंक कर पौधों को खाद देना आरंभ कर दिया। हमारे इस सहयोग से सरकार की तरह उन सज्जन ने भी उखड़ कर अपना बगीचा उखाड़ छज्जा डाल दिया। अब जब मिलो ऊपर वालों को कोसते रहते हैं और हम आज तक समझ नहीं पाए कि घर और अपने आप की सफाई रखने में गलत क्या है?
कुशल कुमार

कोराना मतलब फीकी चाय में डुबोया मीठा बिस्किट

अप्रैल 25, 2021 0

  इंदौर समाचार में प्रकाशित व्यंग्य

दिनांक 7 अप्रैल 2021




कोराना मतलब फीकी चाय में डुबोया मीठा बिस्किट
कोरोना ने सारी दुनिया की चलती गाड़ी में ब्रेक लगा दिया है। इस सहमी, ठहरी और व्याकुल सी दुनिया को सूझ ही नहीं पड़ रही है। घर के अंदर रह नहीं सकते, भूखे मर जाएंगे। बाहर निकल नहीं सकते, कोरोना मार जाएगा! इस भूख और रोटी के बीच नौकरी वाले, सब्जी वाले, राशन वाले, दूध वाले, दवा-दारू वाले और न जाने क्या-क्या वाले लोग आते हैं। सब एक दूसरे के बिना अपना पेट भर ही नहीं सकते हैं।
अब तो इस कलमुंहे कोराना को आए एक साल से भी ज्यादा हो गया है, पीछा ही नहीं छोड़ रहा है। अक्सर ऐसा होता है कि चोर आगे और पुलिस पीछे होती है, लेकिन इस मामले में दुनिया आगे-आगे भाग रही है और कोरोना पीछे-पीछे। पिछले महीने हम भागते-भागते थक कर सुस्ताने बैठे ही थे कि 'शेर आया,शेर आया' की तर्ज पर शोर मच गया – भागो-भागो कोराना आ गया।
कहते हैं, जान है तो जहान है। जान रहेगी तो नौकरी भी मिल जाएगी। मास्क और दो गज की दूरी जरूरी है। कोरोना तब तक आपके घर नहीं आएगा, जब तक आप उसे लेने बाहर नहीं जाएंगे। यह अलग बात है कि धूप में अचानक से हो जाने वाली बरसात की तरह अचानक चीन के वुहान से जो कोरोना आया था, उसके बारे में विश्व स्वास्थ संगठन को एक साल की बाद भी पता नहीं चल पा रहा है कि वह आया कैसे था और जाएगा कैसे?
अब तो घर से बाहर निकला हर आदमी शक के घेरे में है। इस नामुराद कोरोना ने विश्व स्वास्थ संगठन, सरकारों, डाक्टरों, वैज्ञानिकों, नेताओं से लेकर आम आदमी तक को फिलासफर बना दिया है। पॉजटिव और निगेटिव में विभाजित इस दुनिया में हर एक के पास कोरोना को लेकर अपना फलसफा है। कुछ हैं जो मुंह को मास्क में लपेटे सैनिटाईजर की फुहार में नहाने के बाद हाथ धोते-धोते कोरोना-कोरोना की माला जप रहे हैं। कुछ कोरोना के अस्तित्व को खारिज करते हुए, अपनी सोच की सुविधा के अनुसार किसी पार्टी, देश या दवा माफिया की साजिश बता रहे हैं। यह भी कह रहे हैं जहां कोरोना है चुनाव घोषित करवा दो कोरोना नेताओं से डर के से भाग जाएगा।
कुछ मास्क को नाक के नीचे रख रहे हैं। यह वे लोग हैं जो हमेशा फिफ्टी-फिफ्टी रहते हैं और हर मामले में अपनी नाक ऊंची रखते हैं। उनका कहना है, कोरोना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, हमने तो मुंह पहले से बंद कर रखा है, किसी कोरोना-फोना की क्या मजाल है जो हमारी नाक के नीचे कोई फितरत कर जाए।
कोरोना कितना खतरनाक है यह तो वही बता सकते हैं, जिनके अपनों की जान चली जा रही है। बाकी तो कोरोना का परहेज उसी तरह कर रहे हैं जैसे मधुमेह के रोगी बिना चीनी वाली फीकी चाय में मीठे बिस्कुट डुबा कर खाते हैं।
कुशल कुमार
Kushal Kumar और वह टेक्स्ट जिसमें 'व्यंग्य कोराना मतलब मेंडुबोयामीठाबिस्किट कोरोना दुनिय चलती गाडी और व्याकुल भूख सकते, कोरोना क्या वाले. होती आया कोराना गया| भी आप निगेटिव कोरोना दुनिया सनिटाईजर अस्तित्व भाग मेशा -फिप्टी और उनका कोरोना पहलेसे मजाल खतरनाक वही परहेज सकते मधुमेह मीठे बिस्किट डुबा कर कुशल कुमार हारमोनी, प्लॉट सेक्टर-1 कामोठे, मुबई 410209 9869244269/ 1062' लिखा है की फ़ोटो हो सकती है

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

नेताओं से परेशान लोग

अप्रैल 17, 2021 0

इंदौर समाचार में प्रकाशित व्यंग्य

दिनांक 6 फरवरी 2021



 यूं तो लोग बहुत सी बातों से दुखी हैं परंतु इस सूची में नेताओं का नंबर पहला आता है। लोग नेताओं से इतने ज्‍यादा दुखी हैं कि उनकी सारी ऊर्जा नेताओं को गालियां देने में ही खर्च हो जाती है। यह गुस्सा भीतर एक लावे की तरह सुलगता रहता है। बंदे को बस छूने की देर होती है और व‍ह बम की तरह फट पड़ता है। इन बमों के फटने से नेताओं का तो कुछ नहीं बिगड़ता है पर लोग रक्तचाप और मधुमेह के मरीज बनते जा रहे हैं। दुनिया में इन बीमारियों के बढ़ने का असली कारण यह गुस्सा है, खानपान और जीवन शैली तो मुफ्त में बदनाम हैं।  


महीने के आखिर में जब बंदा अपने वेतन की पर्ची देखता है और उसकी अनपढ़ नेताओं के वेतन से तुलना करता है तो उसका खून खौलने लगता है। वह पत्‍नी और बच्चों को डांट-पीट कर गुस्‍सा कम करने की कोशिश करने लगता है लेकिन इससे रोज काम नहीं चलाया जा सकता है। इस चक्‍कर में खुद के पिटने का भी जोखिम रहता है इसीलिए समझदार बंदा ठेके की ओर दौड़ लेता है। वहां जाकर उसे जो ताकत मिलती है उससे वह वहीं बैठे बैठे नेताओं के बारे में 'अनमोल वचन' सुनाने लगता है। जब उसको कोई तवज्जो नहीं देता है तो वह टेबल बजाने लगता है। बदले में ठेके वाले उसको बजा देते हैं। परेशानी, तकलीफ नेता देते हैं बदनाम ठेके वाले और पीने वाले होते हैं।


गनीमत है इन दुखी आत्‍माओं को सोशल मीडिया का एक सुरक्षित ठिकाना मिल गया है, जहां वे जी भर कर नेताओं पर अपनी भड़ास निकालते रह‍ते हैं। नेताओं का वेतन, कैंटीन, भत्ते और पेंशन बंद करो। उनको पढ़ा-लिखा और रिटायर होना चाहिए। यहां भी जब एक आम आदमी इस तरह की पोस्‍टों को फारवर्ड करते-करते थक जाता है और नेताओं को अपने तराजू में तोलता है तो उसका तराजू टूट जाता है। यह टूटा तराजू उसे अवसाद में ले जाता है, उसे अहसास होता है कि उसका पढ़ना, लिखना, जीना सब बेकार गया, नेता हुए बिना मुक्ति नहीं है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।  


इसीलिए लोग डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस-आईपीएस होने के बाद भी नेता बनने की कतार में खड़े मिलते हैं। जिन्‍हें यह ज्ञान पालने में ही प्राप्‍त हो जाता है वे पढ़ने-पढ़ाने के फालतू चक्‍करों में नहीं पड़ते हैं और सीधे काम-धंधे में लग जाते हैं।   


इस मामले में अच्‍छी बात यह है कि बंदा एक को गाली देते-देते कब दूसरी पार्टी में पहुंच जाता है उसे पता ही नहीं चलता है। जहां उसे सारी पीड़ाओं से मुक्ति मिल जाती है और सारी उम्र पार्टी या नेता भक्ति में बीत जाती है। जो बच जाते हैं वे चुनाव में नोटा का बटन दबाते हैं जिससे सारा कचरा साफ हो जाता है। नेताओं का नहीं दिमाग का क्योंकि चुनाव के बाद एक न एक नेता को हमारी सवारी मिल ही जाती है।  


कुशल कुमार

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

2020: एक आखिरी प्रेम कथा

अप्रैल 07, 2021 0


 व्यंग्य:

2020: एक आखिरी प्रेम कथा


एक कह रहा है, “मैं प्यार करता हूं”

दूसरा कह रहा है, “प्यार करता है तो लिख कर दे”।  

पहला कह रहा है, “मैं कह रहा हूं, क्या इतना काफी नहीं है? हमारे यहां प्यार करने की परंपरा है लिख कर देने की नहीं। आज तक किसी ने लिख कर नहीं दिया। क्या शीरी ने फरहाद को लिखकर दिया था? क्या मजनू ने लैला को, पुन्नू ने सस्‍सी को, महिवाल ने सोहनी को लिख कर दिया था? तुम समझ नहीं रहे हो। सारी दुनिया प्यार की दुश्मन होती है। लिख कर देने से दुश्मन जाग जाते हैं। थाने पहुंच जाते हैं और गुंडे भेज देते हैं। मैं कह रहा हूं मान जाओ। मैं सच में प्यार करता हूं।

दूसरा मान नहीं रहा है। “मूर्ख मत बनाओ। प्यार करते हो तो लिख कर दे दो। इतनी सी बात नहीं मान रहे हो और हजार बातें कर रहे हो”।  

“हद है यार! एक बार सबके सामने कहने से शादी और तीन बार कहने से तलाक हो जाता है, तो कहने से प्यार क्यों नहीं हो सकता है”।  

“तुम भी ना बातों के उस्ताद हो। मैं तुम्हारे झांसे में आने वाला नहीं हूं। तुम्हारी जुबान का कोई भरोसा नहीं है इसलिए कह रहा हूं लिख कर दो। मुझे तुम्हारे प्यार का कोई ना कोई सबूत चाहिए। जिससे मुझे तुम्‍हारे प्‍यार पर यकीन हो जाए”।   

“यार। सबूत और दलीलें तो अदालत में चलती हैं। यह तो दिलों का मामला है। इतिहास में एक बार दुष्यंत ने सबूत के तौर पर शकुंतला को अंगूठी दी थी। वह अंगूठी शकुंतला को बहुत महंगी पड़ी थी। इस के चक्‍कर में उसे क्या-क्या झेलना पड़ा। तुम्हें तो पता ही होगा। दुष्यंत शकुंतला को भूल गया  और अंगूठी को मछली खा गई। यह तो उसकी किस्मत अच्छी थी। जिस मछली ने अंगूठी खाई थी। वह मछुआरे के जाल से सीधे राजा की थाली में पहुंच गई। राजा को सबूत मिल गया और शकुंतला को प्यार मिल गया। सोचो यदि अंगूठी किसी और के हाथ लग जाती तो वह किसी और को अपनी शंकुतला बना लेता और शकुंतला रोती रह जाती”।


“तुम कहानियां मत सुनाओ। इतने पहाड़ फाड़ कर तेरे दरवाजे तक आया हूं। जब तक लिख कर नहीं दोगो मानूंगा नहीं”।  पहले वाले ने थक कर कह दिया, “अच्‍छा बाबा, लिख कर दे देता हूं”। 

कहानी यहां खत्‍म हो जाना चाहिए थी पर हुई नहीं।

दूसरा और हत्‍थे से उखड़ गया और कह रहा है, “तुम तो गजब के पलटू हो। अब लिख कर देने को भी तैयार हो गये। अब तो तुम अपना प्‍यार वापस लो तब तुम्‍हारा गिरेबान छोड़ूंगा”। 

“यार। प्‍यार है प्‍यार कैसे वापस ले सकता हूं शादी नहीं है जो तलाक दे दूं”। 

“मुझे कुछ नहीं पता, बस तुम अपना प्‍यार वापस लो”। 

नोट: इस कथा का किसानों और उनके आंदोलन से संबंध है या नहीं, इस पर हम चुप रहेंगे। 

कुशल कुमार

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

भुट्टा चर्चा

अप्रैल 05, 2021 0

 अक्षर विश्व उज्जैन में प्रकाशित व्यंग्य।


भुट्टा चर्चा

भुट्टा चोरी की एक सनसनीखेज घटना पर सारे देश में हंगामा मचा हुआ है। इस पर चर्चा करने के लिए आज हमारे साथ जुड़ रहे हैं। भुट्टा चोर के प्रवक्ता भीक्खूराम जी, भुट्टा किसान के प्रवक्ता आड़तीलाल जी, खेतीवाड़ी विशेषज्ञ खरपतवार जी और भूख विशेषज्ञ अघाये राम जी।

भुट्टा चोरी के इस जघन्य और शर्मनाक अपराध के कारण आज सारे देश में अफरातफरी का माहौल बना हुआ है। कानून व्यवस्था के साथ-साथ नैतिक संकट भी खड़ा हो गया है। चर्चा की शुरूआत भीक्खूराम जी से करते हैं। भीक्खूराम जी बताएं कि आखिर भुक्कड़ जी ने यह अपराध क्यों किया?

देखिए भूख से परेशान भुक्कड़ जी खेत के पास से गुजर रहे थे तो भुट्टे ने उनको ललचा कर भुट्टा तोड़ कर खाने के लिए मजबूर कर दिया और जब उनको अपनी गलती का एहसास हुआ तो वे इस नुकसान की भरपाई करने के लिए भी तैयार हो गये। लेकिन किसान ने इंकार करते हुए हंगामा खड़ा कर दिया। वे महोदय एक ही बात पर अड़े हुए थे। बाकी सब ठीक पर बताओ मेरा भुट्टा क्यों तोड़ा?

आड़तीलाल बीच में कूद पड़े। यह तो चोरी और सीनाजोरी है। आपको पता होना चाहिए कि किसान कितनी मेहनत और प्यार से भुट्टा उगाता है। भुट्टे से उसके कितने सपने और अरमान जुड़े हुए होते हैं। इन राम जी ने भुट्टा तोड़ा और खा लिया। ठीक है भूख लगी थी मन ललचा रहा था तो आप किसी का भी भुट्टा तोड़ कर खा लेंगे। शर्मिंदा होने की जगह भरपाई की धोंस दिखा कर किसान की भावनाओं और मजबूरी का मजाक उड़ाया जा रहा है। जब तक न्याय नहीं मिलेगा। हम चुप नहीं बैठेंगे। भुट्टा चोर मुर्दाबाद।…………

न्याय तो होना ही चाहिए। इसके पहले कि विशेषज्ञों से विचार लें। भीक्खूराम जी जल्दी से अपना जवाब दें।

भीक्खूराम बोलें उसके पहले ही आड़तीलाल जोर जोर से चिल्लाने लगते हैं। अंधेर गर्दी है। चोर को सजा मिलना चाहिए।

भीक्खूराम भी चिल्लाने लगते हैं। भुट्टा खाया तो क्या हुआ। फिर दोनों एक साथ चिल्लाने लगते हैं और किसी को कुछ समझ नहीं आता है। बड़ी देर तक हू, हुआ चलती रहती है। फिर संचालक उन दोनों से भी ज्यादा जोर से चीख कर उन्हें चुप कराने में सफल होता है और बहस के नियमों पर लंबा प्रवचन देने के बाद विशेषज्ञ घास पतवार जी को आमंत्रित करता है।

घास पतवार जी दार्शनिक लहजे में। खेती वाड़ी बड़ा जोखिम का काम हो गया है। जंगली और आवारा जानवर तो नुकसान करते ही हैं। अब इंसान भी उनके साथ मिल गया है।(बीच में भीक्खूराम चीखने लगते हैं।) आप बोल रहे थे तो मैं सुन रहा था। अब आप सुनिये। जब मैं ही बोल नहीं पा रहा हूं तो किसान खेती कैसे कर पाएगा। कोई भी जब चाहे भुट्टा तोड़ लेगा तो न्याय कैसे होगा। भीक्खूराम चिल्लाते हैं। भूख लगी थी खा लिया। पैसे दे रहे हैं तो नहीं, न्याय चाहिए। अब भुट्टे की जगह खेत में भुक्कड़ जी खड़े हो जाएं। इस हु, हुआ के बीच घास पतवार जी चीखते हैं। भूख चोरी का अधिकार नहीं है। भुट्टे के बदले भुट्टा यह तो जंगल राज है। हम संविधान को मानने वाले सभ्य समाज हैं। हमें न्याय चाहिए।

काफी मशक्कत के बाद किसी तरह हु,हुआ रोक कर संचालक अघाये राम जी को आमंत्रित करता है। आप बड़ी देर से और धैर्य से सुन रहे थे। आप संक्षेप में बात रखें। समय की कमी है।

मैंने अपना जीवन भूख से आरंभ किया था। खा खा के भूख को ठिकाने लगाने में विश्वास रखता हूं। भूख लगे तो जो मिले खा लेना चाहिए। मैं इसे मौलिक अधिकारों में शामिल करने की लड़ाई लड़ रहा हूं। भूख एक प्राकृतिक आपदा है। मेरे मित्र भुक्कड़ पर यह आपदा आई और उन्होनें भुट्टा खा लिया। भुट्टा खा कर उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है। कोई अन्याय हुआ ही नहीं तो न्याय मांगने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।

दोस्तो आपने सबके विचार सुने और मुद्दा बहुत ही गंभीर है। एक तरफ भूख और दूसरी तरफ न्याय। इसका निर्णय हम आपके विवेक पर छोड़ते हैं और बहस को यहीं समाप्त करते हैं।

नोट : इस बहस में चैनल से कोई निर्देश नहीं मिला था इसलिए संचालक समझ नहीं पाया कि किसका साथ देना लाभप्रद होगा।

कुशल कुमार